आगामी विधानसभा चुनावों से पूर्व राजनैतिक दलों का प्रत्याशी चयन को लेकर चल रहा मंथन, कांगे्रस में दावेदारों की भीड

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लोकतंत्र के महाकुम्भ में मतदान के पर्व की सुनिश्चितता होते ही क्षेत्र में राजनैतिक सरगर्मियां परवान पर चढ रही है जिसमें पहले प्रदेश स्तर पर तथा अंत में केन्द्रीय समिति की ओर से सभी विधानसभाओं में प्रत्याशी चुने जाऐंगे। मालपुरा-टोडारायसिंह विधानसभा क्षेत्र में लम्बे समय से जीत के लिए तरस रही कांगे्रस के लिए यह चुनाव महत्वूपर्ण माने जा रहे है। विधानसभा चुनावों से पहले ही सम्पूर्ण प्रदेश में सत्ता के खिलाफ चल रही लहर का फायदा इस बार कांगे्रस को मिलने की पूरी संभावना नजर आ रही है। दोनों ही प्रमुख राजनैतिक दल भाजपा व कांगे्रस में टिकिटार्थियों की लम्बी सूची है परंतु इस बार कांगे्रस में करीब एक दर्जन से अधिक प्रत्याशी अपना भाग्य आजमाने को आतुर है। कांगे्रस की ओर से टिकिट पाने के प्रयास में कई दिग्गज तो कई नए चेहरे शामिल है। कांगे्रस की ओर से प्रत्याशी बनने के लिए पूर्व मंत्री डॉ.चन्द्रभान, डॉ.सुरेन्द्र व्यास, पूर्व जिला प्रमुख रामविलास चौधरी, नए चेहरे के रूप में भामाशाह घासीलाल चौधरी, पंकज दाधीच, गोपाल गुर्जर, घनश्याम गुर्जर, रामफूल गुर्जर व पुरूषोत्तम फागणा जैसे नाम प्रमुखता से सामने आ रहे है। जातिगत समीकरणों के आधार पर जाट व गुर्जर समाज का दावा मजबूत नजर आता है तो पूर्व के परिणामों में सत्ता पर काबिज रह चुके डॉ.सुरेन्द्र व्यास की कांगे्रस में वापसी ब्राह्मण समाज का दावा मजबूत करती नजर आती है। जाट समाज व गुर्जर समाज की ओर से कई पुराने तो कई नए चेहरे मेदान में है। पिछले पांच चुनावों में दो बार जाट समाज व दो बार गुर्जर समाज को पार्टी ने प्रत्याशी बनाकर चुनाव लडवाया लेकिन उस वक्त डॉ.सुरेन्द्र व्यास के निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में हर बार चुनाव लडने से पिछले पांच विधानसभा चुनावों में कांगे्रस को जीत नसीब नहीं हो पाई। कांगे्रस के प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट के प्रयासों के बाद हर बार निर्दलीय प्रत्याशी बनकर कांगे्रस की गणित बिगाडने वाले डॉ.सुरेन्द्र व्यास की इस बार कांगे्रस में वापसी हो चुकी है जिसे सुखद माना जा सकता है। कांगे्रस ने जिस प्रकार अन्य राज्यों में प्रयोग करते हुए पुराने चेहरों की जगह नए चेहरों को मौका देकर अच्छे परिणाम प्राप्त किए है उससे लगता है कि क्षेत्र में इस बार पुराने चेहरों को छोडकर नए चेहरों को मौका देकर जीत का सूखा दूर किया जा सकता है। क्योंकि जनता इस बार पुराने व घिसे-पिटे मोहरों से ज्यादा युवा व नए चेहरों के साथ जुडने को आतुर दिखाई दे रही है।

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