मेघों का मल्हार सुनने को तरसे अन्नदाता, प्री मानसून के चलते बुवाई कर चुके किसानों को बीज नष्ट होने की चिंता

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भीषण, गर्मी, उमस से जहां आमजन परेशान है वहीं मानसून में हो रही देरी से अन्नदाताओं के माथे पर भी चिंता की लकीरे दिखाई दे रही है।
भीषण, गर्मी, उमस से जहां आमजन परेशान है वहीं मानसून में हो रही देरी से अन्नदाताओं के माथे पर भी चिंता की लकीरे दिखाई दे रही है।

भीषण, गर्मी, उमस से जहां आमजन परेशान है वहीं मानसून में हो रही देरी से अन्नदाताओं के माथे पर भी चिंता की लकीरे दिखाई दे रही है।

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 प्री मानसून की बारिश के बाद किसानों ने खेतों हंकाई-बुवाई व बिजाई का काम पूरा कर लिया है। लेकिन इसके बावजूद भी बारिश में हो रही देरी से किसान खासे परेशान है।

ताउते तूफान व अन्य चक्रवातों से पूर्व में आई बारिश को मानसून का संकेत समझकर किसानों ने अपने-अपने खेतों में हंकाई, बुवाई व बिजाई का कार्य समय से पूरा कर लिया लेकिन मानसून की सक्रियता नहीं हुई। जिसके चलते किसानों को बीजों के नष्ट होने का खतरा सता रहा है।

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रामलाल, श्योकिशन, चन्द्रकांत सहित अन्य किसानों ने बताया कि बीजों की बुवाई के बाद लगभग एक से डेढ सप्ताह में बारिश हो जाने पर बीज की सार्थकता सिद्ध होती है अन्यथा दो सप्ताह में बीज पूरी तरह नष्ट हो जाता है। ऐसे में यदि मानसून में हो रही देरी एक सप्ताह भी ओर खिंच जाती है तो किसानों को दोबारा से बुवाई करने की समस्या का सामना करना पड सकता है।

 

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 किसानों ने बताया कि महंगी दरों पर बीज खरीदने के साथ-साथ बुवाई पर होने वाला खर्च किसानों पर दोगुना भार चढाएगा। प्रतिदिन डीजल-पेट्रोल के बढते दामों के कारण हंकाई-बुवाई में किया गया खर्च बेकार हो जाएगा तथा दोबारा बुवाई होने की दशा में यह खर्च बढकर दोगुना हो जाएगा। आमजन के साथ-साथ किसानों के लिए मानसून का लम्बा होता इंतजार मुश्किले बढाता दिखाई दे रहा है।

हालांकि रोजाना आसमान में बादल उमड-घुमड कर आते है तथा मौसम बनता-बिगडता भी है लेकिन बारिश की जगह ठंडी हवाओं के झौंके आ कर रह जाते है। ऐसे में अब किसानों की नजरे आसमान की ओर टिकी है। किसानों को अब भी अच्छे मानसून की आस है। इलाके में बरसात नहीं होने से गर्मी व उमस के तेवर तीखे बने हुए है। अच्छी बरसात के लिए किसानों ने मंदिरों व टोने-टोटकों की शरण लेना शुरू कर दिया है। जहां वे भगवान से पूजा-अर्चना कर अच्छी बरसात की कामना कर रहे है।

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