शहर के एकमात्र उद्यान गांधीपार्क की दुर्दशा, नाम का रह गया उद्यान

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ह्रदयस्थली कहे जाने वाले गांधीपार्क पर स्थित शहर के एकमात्र उद्यान गांधीपार्क अपनी ही दुर्दशा पर आंसू बहाते हुए क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों को कोस रहा है। चहुंमुखी विकास का दावा करने वालों के वायदे थोथे साबित होने के बाद एकमात्र उद्यान की दुर्दशापूर्ण हालत से आमजन में खासा रोष व्याप्त है जिस पर जहां पालिका प्रशासन मौन साधे तमाशा देख रहा है वहीं जलदाय विभाग ने ठेकेदार को पूर्ण भुगतान कर कोढ में खाज का काम कर दिया है। अब ना तो ठेकेदार और ना ही पालिका प्रशासन इस उद्यान की सुध ले रहा है जिससे कभी हरा-भरा व पेडों की छाया से आच्छादित रहने वाला उद्यान आज वीरान व उजाड अवस्था में पहुंच चुका है। शहर के एकमात्र उद्यान गांधीपार्क की दुर्दशा का आलम यह है कि जहां किसी जमाने में यह उद्यान बच्चों की किलकारियों से गूंजा करता था एवं सदैव चहल-पहल से चहका करता था तो वरिष्ठजन सुबह-शाम शुद्ध वातावरण में घूमने व दो पल सुकुन से बिताने के लिए इसका उपयोग करते थे। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते अब इस पार्क का उपयोग मूत्रालय व कचरागाह के रूप में किया जाने लगा है। जगह-जगह से दीवारे क्षतिग्रस्त होने व किसी तरह की निगरानी के अभाव में सूअरों एवं आवारा पशुओं की शरणस्थली बन चुका है। शहरी क्षेत्रवासियों को बीसलपुर का शुद्ध पेयजल समयबद्ध तरीके से वितरण किए जाने हेतु साढे नौ करोड रूपयों की लागत से पुनर्गठित पेयजल प्रदाय योजना शुरू की गई जिसके तहत नगरपालिका प्रशासन की सहमति से गांधीपार्क में टंकी का निर्माण करवाया गया। टंकी निर्माण करने वाली ऐजेंसी माहेश्वरी कंस्ट्रक्सन ने लिखित शर्तानुसार उद्यान को पुन: विकसित कर देने का करार किया था। लेकिन जलदाय विभाग ने ठेकेदार को पूर्ण भुगतान कर दिया जिससे निर्माता ऐजेंसी को उजाडे गए उद्यान के विकास से अब कोई सरोकार नहीं रहा है। टंकी निर्माण के दौरान निर्माता ऐजेंसी ने उद्यान में लगे लाखों रूपयों के फव्वारें, झूले-चकरी तथा हरे पेडों को काटा था। यहां तक कि सार्वजनिक उद्यान की दीवारों को निर्माण सामग्री की आपूर्ति के लिए तोडा गया था एवं सुलभ सुविधाओं को ध्वस्त किया गया था लेकिन निर्माता ऐजेंसी द्वारा अब तक उद्यान को विकसित करने की दिशा में कोई श्रम नहीं किया गया जिससे शहर का एकमात्र उद्यान आज अपनी ही बदहाली पर दुर्दशा के आंसू बहा रहा है। जनता द्वारा बार-बार मांग किए जाने के बावजूद गांधीपार्क की दुर्दशा को सुधारने के लिए कोई सार्थक प्रयास शुरू नहीं किया जाना स्थानीय पालिका प्रशासन एवं उपखंड प्रशासन के साथ-साथ क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों की अकर्मण्यता को साबित करने का ज्वलंत उदाहरण बन गया है जिसके लिए शहर के कुछ चिंतकों द्वारा लगातार सौश्यल साईटों माध्यम से उद्यान को पुन: विकसित किए जाने की मांग उठाई जा रही है। हालांकि यह आवाज नक्कारखाने में तूती साबित हो रही है।

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